वो यहीं है (२)



मुझे बारिश बहुत पसंद थी, और उसको बारिश में दिखता मेरा बचपना। हाँ, शायद...... शायद वो मुझसे ज़्यादा समझदार था, इसलिए मेरी नादानियों को वो जीता था। मेरे घरवाले उससे कहते थे वो मेरी ख्वाहिशों को इतनी तबज्जो देकर मुझे बिगाड़ रहा है, तो वो एक ही जवाब देता, की बिगाड़ नहीं रहा, वो खुद जी रहा है..
वो इतना प्यारा था कि ईश्वर को भी उससे मोहब्बत हो गयी, और वो मुझे छोड़ के हमेशा के लिए चला गया। मैंने उससे आखिरी बार बात नहीं कि, और मुलाकात भी नहीं। मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि इन लड़खड़ाते हुए कदमों को उस तक ले जा सकूं, और एक बार उसे देख सकूं उस हालत में जिसकी कल्पना कोई नहीं करता।
मैं नहीं गयी, या ये कहूँ की जा ही नहीं सकी।
शायद जाती तो भ्रम टूट जाता कि वो हर एक पल मेरे साथ है।
आज भी मेरे घर के हर एक कोने में मुझे वो महसूस होता है। कभी लगता है मेरे पास से ही गुज़र कर निकला है। कभी उसकी चहकती हँसी गूंजा करती है।
जब भी उसकी पसंद का कुछ बनाती हूँ तो लगता है वो भी खाकर मेरी तारीफ़ कर रहा है।
आज भी जब टूट कर बिखरती हूँ तो वो मुझे समेट लेता है..
उसके जाने के बाद मैं कभी रोइ नहीं, बहुत चाहा मगर नहीं रो सकी। रोती भी कैसे, रोकर अपना प्यार बता पाती तो उम्र भर रोती, तब भी शायद कम ही पड़ता। मगर ये बताती किसे..??
सब कहते हैं वो जा चुका है.. लेकिन मैं कैसे यक़ीन करूँ..??
क्योंकि मेरी रूह के हर हिस्से में सिर्फ वो है, सिर्फ वो।


#रूपकीबातें #matrubharti

Hindi Story by Roopanjali singh parmar : 111242713

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