मैदानों के दुख
सपाट सतहों में फैले
भूरभूरे सूखे पत्तों से हल्के
गर्म रेत पर पके
पहाडों से अनुबंधित बादलों
की प्रतीक्षा में
आँखों की कोर पर अटे
नंगे,अनमने दुख
सावन की राह से सटे
भरी झोली में करते वलवले
मैदानों के दुख
कौन पाटे
किससे पटे!
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यूं ही। लता खत्री