#काव्योत्सव

"इतने सारे रावण कहाँ से आते हैं????"

हर साल रावण जलाएँ जाते हैं 

हर साल मिटायें जाते हैं

फिर भी रोज इतने सारे रावण कहाँ से आते हैं???.....

वो रावण तो राम के हाथों मोक्ष का दिवाना था 

पर यहाँ तो कभी भी किसी गली में , कभी किसी नुक्कड़ पर  कभी सुनसान सी राहों में रोज़ नए रावण मिल जाते हैं ,

कभी "निर्भया" तो कभी एसिड अटैक की शिकार "सोनाली मुख़र्जी "लक्ष्मी अग्रवाल "झुँझ जाती हैं इन रावणों से  तो

कभी किसी रावण के हाथों किसी पेड़ से लटका कर मार दी जाती हैं |

और भी कम पडे तो हमारे नेता कहते हैं  "बढ़ावा दोगे तो यहीं  होगा ना "|

जो ख़ुद बेनक़ाब हो गए वो इन रावणों कि गवाही को आगे आते हैं |

"अमृतसर "हादसें में हुए नरसंहार से बचते -बचाते जो भाग जाते हैं ,

ऐसे पत्थर दिल और भगौड़े नेताओं को हम चुनकर हमारा रक्षक बनाते हैं|

कभी -कभी सच में तरस आता है, की इन रावणों की

करनी पर वो हर साल होता बदनाम हैँ

ग़लत मार्ग चुनकर भी उसने तो मोक्ष था पाया  

उसने सीता अपहरण किया

पर संयम कभी न खोया अपना पर इनका तो कहना ही क्या ...??

खुद के पापों को छुपाने एक औरत पर ही लांछन लगाते हर सीमा ,हर मर्यादा लांघ जाते

फिर भी शान से अपनी तथाकथित मर्दानगी दिखाते

ये रावण तो जिते -जी नारकीय कृत्य कर असुरों को भी पीछे छोड़ चले 


फ़र्क़ बस इतना हैं के वो रावण बदनाम हैं 

ये सारे रावण बेलगाम हैं 

वो रावण हर साल जलता है पर ये सारे आज़ाद हैं 

क्या सिर्फ रावण के पूतले भर फुकने और चौराहों पर मोमबत्तियाँ जलाने भर से रावण मिट जायेगा  

रावण तो आपमें हम सबमे है

पर जैसे इसे हर साल अनदेखा कर शराफत का नकाब ओढ़े फ़िरते हैं  

रावण के पुतले बनाते हैं ,जलाते हैं ,पर अपने अंदर के रावण को क्यों छुपाते हैं ??

मैं पूछती हूँ आपसे,और इस समाज से ??

किसने हक़ दिया इन्हें रावण को जलाने का ??

जब इनमे ही है उस रावण की प्रतिछाप

पुतले फुंकने से रावण कभी मरेंगे नहीं

जब तक अपने अंदर के रावण को हम जलाएंगे नहीं

हर साल रावण जलाएँ जाते हैं 

हर साल मिटायें जाते हैं

फिर भी रोज इतने सारे रावण कहाँ से आते हैं???????

अंजलि व्यास

Hindi Poem by Anjali Dharam Dutt Vyas : 111171425

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