#kavyotsav2 #काव्योत्सव2 #matrubharti #કાવ્યોત્સવ૨
पता नहीं?
नदिया के पास कभी गया ही नहीं,
'किनारा' क्या होगा, पता नहीं?
दुनिया की भीड़ मे गहरा उतरता गया,
'खोजना' क्या है, पता नहीं?
भगवान का नाम लेती रहती है दुनिया,
वो भी 'थक गया होगा क्या' , पता नहीं?
पानी तो आंखो मे बहोत है दुनिया के,
वो 'खुशी' है या 'गम', पता नहीं?
मंज़िल कहाँ मिली है मुझको,
दूसरों को 'राह' दिखाऊ, पता नहीं?
दुनिया मशगूल है उपकार जताने मे,
'हिसाब' कैसे किया, पता नहीं?
किस्मत से आज़ाद है सब,
'सपने' कहाँ से लाए, पता नहीं?
रास्ता मंज़िल सब एक से है यहाँ,
'शुरुआत' कहाँ से करू, पता नहीं?
पहचान तो बहोत है मेरी,
कहाँ हु मैं, पता नहीं?
Chirag Koshti