#काव्योत्सव

चिनगारीयां कलेजेसे लगाके बैठे है
महोबतसे अपना घर जलाके बैठे है

मेंरा वज़ूद नहीं होनेके बराबर है
इसी लिये हम सरको जूकाके बैठे है

कारवा छूटता गया जवानीके साथ
अपने ही घरमे बेगाने बनके बैठे है

बारिश आगको ठंडा ना कर सकी
सिनेमे दहेकते अंगारे छूपाके बैठे है

सपनोकी किरचे आंखोमे चुभती है
तकियेको खूनसे लाल करके बैठे है

सपना विजापुरा

Hindi Poem by Sapana : 111167690

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