#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2

1.

मेरी राख पर
जब भी पनपेगा गुलाब
तब 'सिर्फ तुम' समझ लेना
प्रेम के फूल !

इन्तजार करूँगा सिंचित होने का
तुमने कहा तो था
सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों
तोड़ना भाता है तुम्हे !

2.

मैं नीम तू शहद
तू गुलाब मैं बरगद

तू कॉलोनी मैं जनपद

3.

कीचड़ में खिला कमल
बागों में खिला गुलाब

खिड़की के दरारों से
दिखा खिला चेहरा उसका

हमारी भी खिल गयी मुस्कान

4.

जिक्र तेरे गुलाब का
जो है
मेरे डायरी में
अब तक सिमटी
सुरक्षित संरक्षित
लजीली
ललछौंह

जब भी छुओ
सिहरन ऐसी कि
खिल उठता है तनबदन।
~मुकेश~

Hindi Poem by Mukesh Kumar Sinha : 111166530

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