#काव्योत्सव 2
( प्रेम)

नाद


ये जो नाद
बाहर है
भीतर क्यों नहीं
ये जो नाद
भीतर है
बाहर क्यों नहीं
क्यों ये नाद
ऊपर है
नीचे नहीं
क्यों ये नाद
नीचे है
ऊपर नहीं
क्यों ये नाद
हिलोरें मारता
वाष्प नहीं
बाहर के नाद
अंदर आओ
तुम
अंदर के नाद
बाहर आओ
तुम
उतरो नीचे
आसमां से
ओ नाद
चलो तुम
आसमां में
मुझ संग ओ नाद
एकमेक हो जाएं
हम कि
एक ही हो नाद
खूबसूरत
ब्रह्मांड की
कल्पना में
कुछ करें
समानुभूति सा
इस धरती पर

Hindi Poem by sangeeta sethi : 111165849
Kavya Ganga Vijay Mishra 5 years ago

बहुत अच्छा लिखता है आप

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