काव्योत्सव2.0
#गीत "हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे"

हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे,
खुद ही खुद को बीमार कर बैठे,
कोई जँचता नहीं है इस दिल को,
जब से तेरा दीदार कर बैठे।।

शुष्क मौसम में बन के बारिश तुम,
तपती धरती को लबलबा ही गए,
काँच सा मन था,गम की काई को,
इश्क के पोंछे से चमका ही गए,
तुम समझते थे कि मैं काफिर हूँ,
तुझमें उनका दीदार कर बैठे,
हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे।।

नर्म मखमल के अब गलीचों पर,
रातों में नींद नहीं आती है,
उलझनों में मैं करवटें बदलूँ,
यादें सारी रात अब जगाती हैं,
दिल मेरा बस में ना रहा मेरे,
जब से नैना ये चार कर बैठे,
हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे।।

दिल की डाली पे इश्क का झूला,
इक दूजे को हम झुलायेंगे,
तोड़कर रश्में सारी दुनिया की,
अपनी कसमों को हम निभाएंगे,
प्यार करना है गर खता "सागर"
ये खता बार बार कर बैठे,
कोई जँचता नहीं है इस दिल को,
जब से तेरा दीदार कर बैठे,
हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे।।
-राकेश सागर

Hindi Poem by Rakesh Kumar Pandey Sagar : 111165606
Satyendra prajapati 5 years ago

बहुत खूब सर जी.... वाह

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