#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2

जल्दी में माथे के साथ
छाती में उगते हल्के बालों को भी
शैम्पू से मलकर
कंडीशनर जरूर लगाते हुए
नहाते समय कुल्ला कर पान पराग थूक लेते हैं
और फिर बिना गमछे से पोंछे
आईने में हल्के से लहराते हुए बालों को निहार कर
शर्ट के ऊपर के दो या तीन बटनों को खोलकर
कॉलर उठाये
मुस्कुराते हुए खुद से कह उठते हैं लड़के
साला प्यार काहे हुआ यार

लपलपाते सूरज की धौंस से बिना डरे
साइड स्टैंड पर स्टाइल से खड़ा करके
पल्सर बाइक को
रे बैन के नकली ब्रांड वाले चश्मे को
खोंसते हैं बेल्ट में
पसीने के बूंद को उतरने देते हैं
कान से गर्दन होते हुए बनियान के भीतर
फिर से खुद को बुदबुदाते हुए कहते हैं
नए नए जवान हुए लड़के
साला बेकार में ही प्यार हुआ

जूते को अपनी पैंट से रगड़ कर
चमकाते हुए
इंतजार करने की अदा में
बेवजह परेशान होते हैं
और फिर बाइक की टँकी पर
हल्के से मुक्के को मारते हुए
अबे यार, आओगी भी
या अकेले ही जाऊं देखने
प्रेम रोग
प्यार के नाटक में गिरफ्त हुए छोकरे
प्यार पर तंज कसते हुए
स्वयं से लड़ते हुए क्यूट हो जाते हैं

प्यार हुआ
प्यार नहीं हुआ
सिक्के के दो पहलू की तरह
हेड टेल से प्रेम के परिमाण को मापते हुए
हेड कह कर उछालते हैं सिक्का
पर टेल आने पर, खुद से आंखे बचाकर
उल्टा करके सिक्के को
कह देते हैं थोड़ा जोर से
देखो मुझे तो प्यार हुआ ही है न
उसको ही समय नहीं है
मेरे लिए

अकेले में खुद ब खुद मुस्काते हुए
बात बेबात के फुल शर्ट की आस्तीन को
कर के ऊपर तक
बिना होंठ हिलाए कहते हैं स्वयं से ऐसे
जैसे रिहर्सल कर रहे हों कहने का
कि अबकी तो लेट करने के बदले
तुमको देना ही होगा
तीन चुम्मा ।
एक आज का, एक लेट का
और एक ?
छोड़ो, मत करो बहस, बस दे ही देना।

पोखर की रोहू मछली की तरह
कम पानी में कूद फांद मचा कर
शिथिल हो
गुस्से में तमतमाने के बावजूद
समय के बीत जाने पर भी
इंतजार करते हुए लड़के
रखते हैं चाहत उम्मीदों की गुलाबी रंगत का
शायद भरी दोपहरी में
रूमानी बादल छाए
शायद वो आकर चुपके से कंधा थपथपाए
औऱ कह ही दे
मैं आई आई आई आ गयी

गुलाबी कागज पर
लाल कलम से लिख डालते हैं प्रेम पत्र
ताकि हो अहसास
रक्त से बहते प्रेम का
बेशक झूठ से गढ़तेहैं प्रेम
पर पत्र की अंतिम पंक्तियों में जरूर लिखते हैं
सिर्फ तुम्हारा

हाँ तो
प्रेम में डूबे लड़के
हजार झूठ में एक सच को सँजोये
करते हैं प्रेम
और उस सच के इजहार में
हर बार मिलने पर कहते हैं
आई लव यू

~मुकेश~

Hindi Poem by Mukesh Kumar Sinha : 111165356

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