#kavyotsav2

*पथ्थर हूँ मैं .....:*

कोई जो पुछे मुझसे
कौन हूँ मैं ?
कह देता हूँ
पथ्थर हूँ मैं ।

दिखता है सब,
सुनता भी हूँ,
ख्वाहिशें हजारों,
दिल में रखता भी हूँ ।

फिर भी कहता हूँ
पथ्थर हूँ मैं ।
जानवर तो नही,
उससे भी बदतर हूँ मैं ।

लडकीयों से छेडछाड
रस्तें में रोज हि होती ।
फिर भला मेरी आँखे,
उसे क्यों ना देख पाती ।

आयें दिन अखबार में
बलात्कार कि खबरें छपती ।
पढता तो मैं भी हूँ ,
पर दिल को वो बात नही चुभती ।

कभी पुछा नही खुदसे,
ऐसा क्यू हूँ मैं ?
बस यही कहता हूँ,
पथ्थर हूँ मैं ।

जातपात का वायरस
लहू में उबल रहा ।
फिर भी हम कहें
एक है सारा जहाँ ।

सुनकर झुठी ये बाते,
अनसुना करता हूँ ।
उधार कि है जात,
फिर भी उसे ओढ के सोता हूँ ।

इस दोगलेपन को,
जानकर भी सह लेता हूँ मैं ।
क्या करू सरकार,
आखिर पथ्थर हूँ मैं ।

Marathi Poem by Amey Jadhav : 111163209

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