#कव्योत्स्व 2
ज़िंदगी(भावना प्रधान)
ज़िंदगी,,,
तु आज रुक जाए तो !!
यही ठहर जाये तो !!
बिखर गया जो सब उसे समेटकर आते हे ....
रूठा कोई अपना उसे मनाकर आते है ....
तुटा जो तारा उसे टिमटिमाकर आते है ....
अरबो खरबो तारोमे से अपना एक सितारा खोजकर आते है ....
घनी अंधेरी रातोमे जुगनु बनकर आते है ....
खोये हूए लबो पर मुस्कान बनकर आते है ....
कोरे कागज पर अलफास बनकर आते है ....
मुश्किल हुई ज़िंदगी को आसान बनाकर आते है ...
ऐ , जिंदगी तु रुक जाये तो ठहर जाये तो ,
हम खुदको ही बदलकर आते है ...
ज़माने को तो बदल नहीं सकते ,
अपने आप को ही बदल कर आते है |