समय नहीं है
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
समय तो सबके पास है
पर अब पहले की तरह आत्मीयता न रही
रिश्तों में गहराई न रही
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
सब अपनी ही दुनिया में खोए हुए हैं
किसी के पास किसी के लिए फुरसत ही नहीं
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
कभी फेसबुक पर तो कभी व्हाटसअप और कभी ट्यूटर
पर लगे हुए हैं
एक कमरे में बैठे दो लोग अजनबी बन गए हैं
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
पहले हृदय धड़कता था
किसी अपने के लिए
अब वह धड़कता पैसे के लिए
धनवानों के हर रिश्ते हैं यहाँ
गरीब को कोई पूछता नहीं
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
देवभूमि की व्यथा
मैं व्यथित हूँ-मेरे पुत्र, पुत्रियो
तुम मुझे छोड़़कर चले गए
नाम कमाने, दाम कमाने
भूल गए तुम इस मिट््टी को
जिस पर लोट-लोटकर तुमने अपना बचपन बिताया
हाय! फिर क्यों तुमने अपना उत्तराखंड भुलाया
तुम रच गए पश्चिमी संस्कृति में
अपनी हस्ती ही मिटा डाली
मुझे तो चिंता है तुम्हारी
मैं माँ, जन्मभूमि हूँ तुम्हारी
क्या तुम मुझे बचाने नहीं आओगे
अपनी गरज जब होती है
तुम आ जाते हो पहाड़्
पूजा की तुमने, छप्पन भोग लगाया
धन-धन्य से भर दिया मेरा संसार
पर तुम नहीं समझते मेरे बच्चो
तुम ही तो हो असली में मेरा संसार
मैं तुम्हारी माँ तुम्हें कैसे भुलाऊँगी
तुम छिद्रित करोगे मेरा हदय
तो भी मैं तुम्हें हदय से लगाऊँगी
कुछ नहीं चाहती मैं तुमसे बेटा!
तुम लौट आओ पहाड़़
बंजर होती इस धरती पर
तुम अपने नन्हें कदमों से फिर ला दो बहार
-आशा रौतेला मेहरा
समय नहीं है
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
समय तो सबके पास है
पर अब पहले की तरह आत्मीयता न रही
रिश्तों में गहराई न रही
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
सब अपनी ही दुनिया में खोए हुए हैं
किसी के पास किसी के लिए फुरसत ही नहीं
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
कभी फेसबुक पर तो कभी व्हाटसअप और कभी ट्यूटर
पर लगे हुए हैं
एक कमरे में बैठे दो लोग अजनबी बन गए हैं
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
पहले हृदय धड़कता था
किसी अपने के लिए
अब वह धड़कता पैसे के लिए
धनवानों के हर रिश्ते हैं यहाँ
गरीब को कोई पूछता नहीं
सब कहते हैं मेरे पास समय नहीं है
अरे! झूठ बोलते हैं सब
देवभूमि की व्यथा
मैं व्यथित हूँ-मेरे पुत्र, पुत्रियो
तुम मुझे छोड़़कर चले गए
नाम कमाने, दाम कमाने
भूल गए तुम इस मिट््टी को
जिस पर लोट-लोटकर तुमने अपना बचपन बिताया
हाय! फिर क्यों तुमने अपना उत्तराखंड भुलाया
तुम रच गए पश्चिमी संस्कृति में
अपनी हस्ती ही मिटा डाली
मुझे तो चिंता है तुम्हारी
मैं माँ, जन्मभूमि हूँ तुम्हारी
क्या तुम मुझे बचाने नहीं आओगे
अपनी गरज जब होती है
तुम आ जाते हो पहाड़्
पूजा की तुमने, छप्पन भोग लगाया
धन-धन्य से भर दिया मेरा संसार
पर तुम नहीं समझते मेरे बच्चो
तुम ही तो हो असली में मेरा संसार
मैं तुम्हारी माँ तुम्हें कैसे भुलाऊँगी
तुम छिद्रित करोगे मेरा हदय
तो भी मैं तुम्हें हदय से लगाऊँगी
कुछ नहीं चाहती मैं तुमसे बेटा!
तुम लौट आओ पहाड़़
बंजर होती इस धरती पर
तुम अपने नन्हें कदमों से फिर ला दो बहार
-आशा रौतेला मेहरा