#kavyotsav -2
शहीद की वर्दी
मैं उस शहीद सैनिक के शरीर की वर्दी हूँ
जिस पर कई गोलियाँ छेद कर निकल गईं
रक्त सिक्त मेरे शरीर के पसीने में
बूंद-बूंद रक्त से मिल रही थी।
खून से भरी वर्दी की गंध दूर-दूर तक फैल रही थी
झाड़ियों में उसके प्राणहीन शरीर के टुकड़े
लटक रहे थे जो देख रहे थे उस सैनिक की
निस्तेज आँखों में करवट लेते कई सपने जिसमें थे
एक बेबस माँ का चेहरा
जो बेटे की बाट जोह रही थी, जिसकी सुर्ख आँखें
बेटे को एक नज़र देखने को तरस रही थीं
उन आँखों में था उसकी अविवाहित बहन की
शादी के सपने जिन्हें पूरा करने की जिम्मेदारियाँ थीं
उसकी आँखों में था सुनहरी शादी की जोड़े में
उसकी दुल्हन का चेहरा
जिसने डेढ़ साल पहले ही उसकी दरवाजे पर
लाल रंग की हथेली का छाप छोड़ा था।
उसकी नज़र देख रही थी तीन महीने की
मासूम बेटी की मुस्कान को
जिसे गोद में भरने को उसकी बाहें आतुर थीं।
सब से परे उन आँखों में लहरा रहा था
एक आज़ाद भारत की पताका
और वह गर्व से सैलूट दे खड़ा था सीने में गोली लिए
वो एक शरीर नहीं था
उसमें बसा था हँसता-खेलता पूरा एक देश,
जिसमें कई जिंदगियाँ जोड़ी थी
जो धरती पर मिट्टी का लेप लगाए
शान से सो रहा था।
लता तेजेश्वर 'रेणुका'