कविता

हथेली का खालीपन
अर्पण कुमार

खाली हथेली पर
उदास नहीं होता
हाँ, इतराता ज़रूर हूँ मैं
सोचता हूँ...
खाली है यह
तो जाने किन मूल्यवान चीज़ों से
कब भर जाए
अभी नहीं तो फिर कभी
आज नहीं तो कल
कल नहीं तो परसों

खाली तो है यह,
मगर किसी सीमा से मुक्त भी
खाली है,
सो इसपर कुछ भी
रखा जा सकता है
देखें अगर
इससे हवा और रोशनी
कैसे उन्मुक्त गुजरती है
आकाश उतर कर
कैसे धम्म से बैठ गया है इसपर
और इस विराटता को महसूसतीं
मेरी ये पाँचों उँगलियाँ
इस खालीपन को
गोया उत्सव में
बदलती चली जा रही हैं

धूप में बैठता हूँ देर तलक
और धूप में चमकती हथेली को
देखता हूँ भरपूर
लकीरों से भरी त्वचा पर
सोने की परत चढ़ी महसूस होती है

मैं कृतज्ञ हो उठता हूँ
मेरा दाहिना हाथ हिलने लगता है
ऊपर आकाश में चमकते सूरज को
अभिभावदन करती हथेली का चेहरा
मुझे बड़ा संतोषप्रद दिखता है

निराश नहीं करती
मुझे मेरी रिक्त हथेली
क्योंकि मेरे भीतर का विश्वास
इसे खाली
मानने को तैयार नहीं
ठीक वैसे ही जैसे
अभी पश्चिम में डूब रहे सूरज को
देखते हुए
मेरी विज्ञान-सम्मत दृष्टि
उसे तिरोहित होना
नहीं मानती

मुझे भरोसा नहीं
किसी भविष्यवाणी में
मगर जब कोई नज़ूमी
मेरी हथेली को
देखना चाहता है
तो मैं सहर्ष
आगे कर देता हूँ इसे
उसका माखौल उड़ाना
मेरा मकसद नहीं होता
मगर अपनी हथेली को
दो व्यक्तियों के बीच
यूँ पुल बनता देख
मुझे अच्छा लगता है
अच्छी बुरी जितनी बातें
मेरे
अनजाने भविष्य को लेकर
बताई जाती है
यह हथेली
उस सारे वाग्जाल के केंद्र में पड़ी
हल्के से मुस्कुरा देती है
मानो कह रही हो कि
जैसे यह पूरी सृष्टि ही
एक वाग्जाल हो

ये खाली हथेलियाँ ही हैं
जिनके बीच रखकर
जुए के पासे फेंके जाते हैं
राजा रंक और रंक राजा
बन जाता है
इन खाली हथेलियों पर
बसंत में
हम भांति-भांति के रंग
बनाते हैं
और अपने प्रेमीजनों के गालों पर
लगा देते हैं

सोचता हूँ ...
ये हथेलियाँ
निस्सार कैसे हो सकती है
जो कई चेहरों के
दुलार-दर्प से
जगमग हों!
.................. ............
#KAVYOTSAV -2

Hindi Poem by Arpan Kumar : 111158868

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