#moralstories
व्यस्त
अभी बैठे बैठे अचानक दिमाग स्कूल टाइम में चला गया, स्कूल की बिल्डिंग याद आ गई, फिर क्लास रूम्स, फील्ड, ऑफिस और वो नोटिस बोर्ड, जिस पे हर नई न्यूज़ चिपका दी जाती थी l वो प्रिंसिपल रूम जिसमे मैं अक्सर हाथ में एक एप्लीकेशन ले कर जाता था कि इस सब्जेक्ट के लिए किसी टीचर को भेजा जाए, रूम के दरवाजे के बाहर 5 मिनट दोस्तों के साथ तू तू मैं मैं, तू आगे चल, तू भी तो साथ चल,फिर डरते डरते कहता था, "सर हमारा इस सब्जेक्ट का पीरियड नहीं लगता कई दिनों से तो हम सब स्टूडेंट्स ये एप्लीकेशन लाएं हैं"l ये कह कर वहां से ऐसे भागता था जैसे पीछे कोई भूत हो और फिर वो दोस्त, फिर याद आ गई उन दोस्तों की, वही दोस्त जिनके बिना कुछ अच्छा ही नहीं लगता था, लड़ते थे, हँसते थे,खेलते थे,पढ़ते थे और ...
कुछ और याद आता इस से पहले बॉस ने एक फाइल पकड़ा दी, मैं अचानक अचम्भे में पड गया,
कुछ सोचने लगा, पर पहले की तरह होठों पे मुस्कान नहीं आई और न किसी दोस्त ने चिढ़ाया जैसे सर कुछ काम दे देते थे तब वो चिड़ाते थे l
मैं अपने मोबाइल मे कुछ पुराने दोस्तों के नंबर निकालने लगा तब तक बॉस ने फिर आवाज़ दी, मै फाइल ले कर काम करने लगा, पर मेरा दिल मुझसे यही पूछ रहा था बार बार ....
मैं बदल गया, या वक़्त बदल गया ??? और मेरा मोबाइल टेबल पे रखा रहा जिसमे निकला दोस्त का नंबर आज भी डायल होने की राह देख रहा है l
दोस्तों आज कल की जिंदगी मे हम इतने भी व्यस्त नहीं की किसी पुराने दोस्तों से मिलकर जिंदगी मे कुछ नई खुशियां हांसिल कर सकें और टेंशन फ्री रह सकें पर अफसोस हम काम के पहाड़ के नीचे खुद को यूँ दबा चुके हैं कि उसमे से निकलना ही नहीं चाहते और वास्तविक खुशियों से दूर होते जा रहे हैं जो अपनो से मिलके समय बिताने मे ही मिलती है l