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परिवर्तन
"मम्मी! ऑन लाइन आर्डर कर दूँगा, या चलिए मॉल से दिला दूँगा| वह भी बहुत खूबसूरत- बढ़िया दीये। चलिए यहाँ से | इन गँवारों की भाषा समझ नहीं आती, ऊपर से रिरियाते हुए पीछे ही पड़ जाते हैं | बात करने की तमीज भी नहीं है इन लोगों में |"
मम्मी उस दूकान से आगे फुटपाथ पर बैठी एक बुढ़िया की ओर बढ़ी। उसके दीये खरीदने को, जमीन में बैठकर ही चुनने लगीं|
देखते ही झुंझलाकर संदीप बोला- "क्या मम्मी, आपने तो मेरी बेइज्ज़ती करा दी | मैं 'हाईकोर्ट का जज' और मेरी माँ जमींन पर बैठी दीये खरीद रही है। जानती हो कैसे-कैसे बोल बोलेंगे लोग .. जज साहब ..."
बीच में ही माँ आहत होकर बोलीं - "इसी ज़मीन में बैठ ही दस साल तक सब्ज़ी बेची है, कई तेरी जैसों की मम्मियों ने ही ख़रीदी है मुझसे सब्जी, तब जाके आज तू बोल पा रहा है।"
संदीप विस्फारित आंखों से माँ को बस देखता रह गया।
मम्मी उसे घूरती हुई आगे बोली-
"वह दिन तू भले भूल गया बेटा, पर मैं कैसे भुलूँ भला | तेरे मॉल से या ऑनलाइन दीये तो मिल जायेंगे बेटा, पर दिल कैसे मिलेंगे भला?"
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सविता मिश्रा 'अक्षजा'
2012.savita.mishra@gmail.com
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