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काली चूड़ी
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बहू को काले रंग की साड़ी के साथ चाव से मैचिंग के सुंदर काले कंगन पहनते देख सास ने त्यौरियां चढ़ाते हुए कहा,
"ये क्या बहू? क्या तुम जानती नहीं कि हमारे यहां काली चूड़ी पहनने का रिवाज़ ना है।"
बहू ने यथासंभव विनम्रता घोलते हुए कारण पूछा।
"क्योंकि हमारी सास कहती थीं कि हमारे खानदान में एक औरत जब सती हुई तो काली चूड़ियाँ पहने हुए थी।" सास ने ज्ञान का अथाह प्रदर्शन करते हुए रहस्योद्घाटन किया।
"तो इसका मतलब आपकी सास यानि मेरी दादी सास सारे रीति रिवाज़ मानती थीं?"
"हाँ, बिल्कुल"
"हाआआ.....मतलब आपके परिवार में सती प्रथा का भी रिवाज़ था कभी। पर आपकी सास तो .....और आप भी...मेरा मतलब...ये रिवाज़ तो....."
"अब कुछ रिवाज़ छूट भी जाते हैं बहू।"
"हाँ सही कहा आपने मांजी। लो बताओ कोई तुक है भला। किसी वैद्य हक़ीम डॉक्टर ने थोड़े ही कहा है कि सब रिवाज़ माने जाएं।"
असमंजस में पड़ी सास ने सहमति में सिर हिलाया।
"ह्म्म्म.....तो ये काली चूड़ी न पहननेवाला रिवाज़ भी छूट गया समझिये।"
और फिर कालांतर में इसी तरह सती प्रथा के छूटे रिवाज़ की आड़ में कई बेतुके रिवाज़ छूटते चले गए। आजकल की बहुएं सब की सब पतनशील हैं।
---अंजू शर्मा