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कुलदीपक

उसने मकान के कागज पापा के हाथ मे थमाए ..और कहा "पापा ये मकान हमेशा आपका ही था और आपका ही रहेगा, जब तक मैं हूँ आप किसी बात की चिंता मत करिए ..!" उसने घूर कर अपने छोटे भाई को देखा जो इस वक़्त शर्म से नज़रें नीची किये अपराधी की भांति खड़ा था

पिता :(आंखों में आंसू व भर्राए गले से )"मुझे माफ़ कर दो बेटी , मैंने हमेशा तुम्हे गलत समझा कभी तुम्हे कुछ करने न दिया, हतोत्साहित किया ,पर देख मेरे बिजनेस के बुरे दौर में तू मेरा सहारा भी बनी और आज तूने मेरी एकमात्र जमा पूंजी की इतनी परवाह भी की ..ये तो यह भी न समझ सका कि यह मकान मेरे लिए क्या था '..आज इसने मेरे लाड़ प्यार का क्या फल दिया मुझे... अय्याशी की लत में मेरे ही घर का सौदा करने चला था..मैं सोचता था बेटी तितली की तरह नाजुक सी कमजोर होती है परायी होती है उसमें बोझ उठाने का सामर्थ्य नही होता, पर आज मैंने उन पंखों की ताकत देख ली , ईश्वर ने वक़्त रहते मेरी आँखें खोल दी कितना गलत था मैं सोचता था ,बेटा कुल का दीपक होता है पर आज समझ आया जो कुल का मान बढ़ाए वास्तव में वही कुलदीपक है।"

-कविता जयन्त

Hindi Story by kavita jayant Srivastava : 111127086

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