निकलता हूँ बस्ता लेकर जाने किसकी तलाश मे
मिल जायेगा किसी दिन ऐसी एक आश मे

जितना पीता हु उतनी बढती ही जाती है
पता नहीं क्या जादू छिपा है इस प्यास मे

मिल नहीं पाता प्रियजनों से समय पर
सोचता हूँ और क्या बाकी है सर्वनाश मे

रंग बदल जाते है सबके आजमा ने पर
जो दिखा है अँधेरे मैं वो अलग है प्रकाश मे

इतना भी मत गवां देना 'होश' कभी भी
मिला ना पाए कभी जो होता है आसपास मे

श्रेयस त्रिवेदी

Gujarati Shayri by Shreyas Trivedi : 111099902

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