ग़ज़ल

तेरे दर्दे दिल का ही तो गुबार हूँ,
मैं तो यारों हादसों का शिकार हूँ।

कह न पाया जिसको तू आज तक कभी,
ढल चुकी लफ़्ज़ों में मैं वो पुकार हूँ।

जी रहे हैं माँगकर साँसें तो कईं,
सोच के ही बन गया ग़मगुसार हूँ।

मुन्तज़िर जिसकी नज़र का रहा सदा,
देख मैं तेरा वो ही ख़ाकसार हूँ।

अब तो देखूँगा वो सपने सुहाने 'रण',
तोड़ने को ये क़फ़स बेकरार हूँ।

पूर्णतया स्वरचित व स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

English Shayri by Anshul Pal : 111063360

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