#Kavyotsav
शोर- ए -बाझार में
खामोशी से गुजरे
कंधे पे लहरती
शबनम जो सवारे
शायद वो शायर था
जेब पर मेडलसा पेन
फिकी सी कमिज
स्याही से महकते
आदब और तमिज
शायद वो शायर था
फरोख्तों के भीड में
सासों करे गहरे
पुरानी किताबों के
पास जो ठहरे
शायद वो शायर था
बाझार की तलाशी कर
चाय की ठेले पें रुकें
होठों सें लगाय ग्लास
नजर भिझुक पर थमें
शायद वो शायर था
चाय को सौपे
भिझुक के हाथो में
पैसे दिये चाय कें
खुशी झलकी बातों में
शायद वो दर्द का खरीददार था