#kavyotsav

• माँ
जब ईश्वर ने जगत रचा, तब अपनी काया छोड़ गया
माँ के रूप में इस धरती पर, अपनी छाया छोड़ गया।

हर मुश्किल से हर संकट से, हमको जिसने तारा है
इस अंधियारे अंतरिक्ष में,बस माँ ही एक सितारा है।

जब जब मैंने ख़ुद को किसी दलदल में धंसता पाया
माँ के हाथ का मिला सहारा तब खुद को हँसता पाया।

साथ न उनका त्यागना भले अहंकार का झोंका आ जाए
अपना बचपन याद रखना जब माँ को बुढ़ापा आ जाए।

दूर शहर में शोर में ज़िन्दगी तनहाई के हाथ रही
वो माँ की यादें थी, जो हर पल मेरे साथ रही।

जादू है उन आँखों में, मेरे छिपे अश्कों को जान लिया
हँसने का ढोंग काम न आया, माँ ने दुःख पहचान लिया।

सबने पूछा कितने पैसे कितना धन तुमने पाया है
बस माँ थी जो पूछ रही क्या तुमने खाना खाया है।

Hindi Shayri by vinod kumar dave : 111034984

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now