#KAVYOTSAV
■ मुहब्बत की राहें
इन राहों पर नाम लिखा है जाने कितने प्यारों का
लैला मजनूं हीर रांझा और कई दिलदारों का।
मुद्दत बीती गुज़र गये वो, पर कायम तासीर है
मयखानों की चंद्रमुखी, या देवदास की पारो का।
ढोला मारू मरुभूमि में, प्रेम की पावन बूंदें है
ये जमाना गवाह बना है ऐसे कई नज़ारों का।
कली-कली ज़िंदा चुनवा दी इन बागों के बैरी ने
क्या सलीम ने हश्र किया था नफ़रत के इन ख़ारों का।
भले लुटेरों की बस्ती है इश्क़ शहर के इस कोने में
इन रस्तों पर काम नहीं तीखे पैने हथियारों का।
घृणा द्वेष और ईर्ष्या को मिटना है, मिट जाना है
प्रेम दीया ही नाश करेगा नफ़रत के अंधियारों का।
क्या दृश्य रहा होगा जब मीरा मिल गई माधव की मूर्ति में
बाँसुरी से मिलन हुआ था जब वीणा के तारों का।
‘दवे’ ज़माना कब छोड़ेगा नफ़रत की ये आग उगलना
कब तक दीपक कत्ल करेंगे इन परवाने यारों का।