वो अजनबी थी,
इस फिरंगी, बेरंगी और सप्तरंगी जिवन में
वो अजनबी थी।

शहनाई बजी जब चिराग जलाने की और मजा उठा,
पतंग सी थी दोर लंबी जिने में तब वो अजनबी थी।

सतर्क होना था जिंदगी में सबसे बहेतर जिना था,
कई महेरबानी अपनी जुबानी - अपना पराया...
तब भी बादल जैसा दिल ना गरजा, ना बरसा

क्युंकी वो अजनबी थी...वो अजनबी थी।

#रवि_गोहेल

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