मेरी राहें कठिन हों तो उन्हें आसान मत करना
फिरूं अभिमान में मगरूर मेरी संभाल मत करना
मुझे ठोकर से चलना है ना फूलों सा हो जीवन ये
सदा सन्मार्ग दिखलाकर मेरी भक्ति प्रबल करना।।

मुझे कुछ सीख लेना है जिज्ञासु बन के रहना है
ना हो अभिमान जीवन में मुझे अज्ञात रहना है
मेरे कर्मों के पतरे में नियति का लेख क्या जानूं
मैं जानूं एक ईश्वर को मुझे खुद से ही मिलना है

खिले मुस्कान अधरों पर दुखों का पात गिर जाए
मेरे हिस्से में हो पतझड़ या जीवन में वसंत आए
घिरे बदरी घनी काली घिरे तूफान जीवन में
फिरूं बेफिक्र मलंग होकर उमंग ए बहार आ जाए।।

अगर दुख की बयारें हों तो पुरवाई सुखों की हो
मिलेगा जन्म दोबारा ना रुसवाई जहां में हो
ये जीवन है तो पतझड़ भी खिलेंगे पुष्प दोबारा
हमें हर हाल में जीना सुखद अंतिम विदाई हो।।

-गायत्री शर्मा गुँजन

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