काल स्वयं मुझसे डरा है, मैं काल से नहीं।
कालेपानी का कालकूट पीकर,
काल से कराल स्तंभों को झकझोर कर।।
मैं बार-बार लौट आया हूँ,
और फिर भी मैं जीवित हूँ।
हारी मृत्यु है, मैं नहीं।। - वीर सावरकर

Hindi Poem by Jatin Tyagi : 111861925

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