माँ ने लिखा था --
पतझड़ होकर फिर बसंत में ,
नाव पल्लव आ जाते क्यों?
नदिया -नाले सूख सूखकर ,
फिर जल से भर जाते क्यों ?
सुख पाकर के इसी जहाँ में ,
फिर मानव दु:ख पाते क्यों ?
माँ,स्व. दयावती शास्त्री की पंक्तियाँ हैं ,
माँ संस्कृत की लैकचरर थीं और काफ़ी लिखा करती थीं |
उनकी कभी कभी कुछ पंक्तियाँ स्मृतिपटल मार आ बिराजती हैं |
मित्रों से साझा कर रही हूँ |
डॉ.प्रणव भारती