माँ ने लिखा था --



पतझड़ होकर फिर बसंत में ,

नाव पल्लव आ जाते क्यों?

नदिया -नाले सूख सूखकर ,

फिर जल से भर जाते क्यों ?

सुख पाकर के इसी जहाँ में ,

फिर मानव दु:ख पाते क्यों ?



माँ,स्व. दयावती शास्त्री की पंक्तियाँ हैं ,

माँ संस्कृत की लैकचरर थीं और काफ़ी लिखा करती थीं |

उनकी कभी कभी कुछ पंक्तियाँ स्मृतिपटल मार आ बिराजती हैं |

मित्रों से साझा कर रही हूँ |



डॉ.प्रणव भारती

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111857870

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now