शहर में हमारे प्यार का
हल्ला नहीं था,
बम फटने के बराबर भी नहीं,
बन्दूक चलने के बराबर भी नहीं,
गोली लगने के बराबर भी नहीं,
आतंकवादियों के
आतंक के बराबर भी नहीं,
एकदम बूँद की तरह
वह छटका
हल्की सी सुरसुराहट हुई तो
किसी और ने उसे दबा दिया।
तब मुझे लगा
हम यहाँ प्यार के लिये नहीं
आतंक झेलने आये हैं,
सांस लेने नहीं
सांस देने आये हैं।
पर इसी सब के बीच हमें
कुछ क्षण निकाल
संवेदनशील हो जाना है
सौन्दर्य की तरह।
देखनी है सारी सृष्टि
आँखों ही आँखों में,
डरना नहीं, डराना है
आतंक की आँखों को।
शहर में हमारे प्यार का
हल्ला नहीं है,
पर सुरसुराहट तो है
कान लगाकर सुनो तो
संगीत सा सुरसुराता है।
** महेश रौतेला
१६.०१.२०१६