देखो आई संक्रांति निराली
उत्तरायण सूर्य के आभा की छटा निराली,
देखो,मकर संक्रांति में आई है खुशहाली।
पोंगल,कहीं लोहड़ी,भोगाली बिहु की धूम,
छत पे पतंग उड़ाती,टोली के हर्ष की गूंज।
नदियों के तट पे गंगासागर व माघ के मेले
स्नान,तिल,खिचड़ी के भोग,दान अलबेले।
भक्ति आस्था के होते लोक समागम अनूठे।
शीत ऋतु में प्रखर सूर्य-दर्शन से सब झूमे।
मकर रेखा पे सूर्य की किरणें हैं चहुँ ओर,
फसल पर्व,कृषक के हर्ष का ओर न छोर।
सभ्यता और संस्कृति का संवाहक त्योहार,
संक्रांति ये प्रकृति का,मानव को है उपहार।
(मौलिक कॉपीराइट रचना)
डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय