बेहिसाब मौहब्बत....
मेरी मौहब्बत का हिसाब ना पूछ ए जालिम,
बेहिसाब मौहब्बत की कोई कीमत नहीं होती,
रोया था मजनू भी लैला की मौहब्बत में,
मरता ना राझाँ जो उसे हीर से मौहब्बत ना होती,
मैं तो लिख देता मौहब्बत की किताबें तेरे लिए,
अगर तेरी मेरी मौहब्बत की कहानी अधूरी ना होती,
तूने मेरी आँखों को पढ़कर कभी जाना ही नहीं,
अगर मौहब्बत जान जाती तू,तो बेवफा ना होती,
मेरे मरने तक मैं तेरा इन्तजार करूँगा,देख लेना
एक दिन मैं तुझसे अपनी बेपनाह मौहब्बत का
हिसाब करूँगा......
सरोज वर्मा....🌹