मजदूर
लक्ष्य हेतु जी तोड़ मेहनत,
बह रहा तन से पसीना,
कार्यस्थल दिवस में,
निशा में था बसेरा ।
स्वेद लथपत,
हांफ भरता,
बाजुओं को सख्त करता,
सब्बल से कर प्रहार ,
शिला खंड खंड कर दे,
वह संघर्ष रत मजदूर।
खाट टूटी,
राह रूठी,
स्वप्न के संसार रूठे,
महंगाई रथ पर सवार,
स्वप्न खण्ड खण्ड कर दे,
वह संघर्षरत मजदूर।
दिवस बीता,
रात आई,
साथ गहरी ठंढ लाई,
हांथ कांपे, पांव कांपे
साथ अस्थिपंजर कांपे।
टूटी खाट में दुबका
कुतरे फटे बिस्तर से
आसमान झांके।
तिनका तिनका
पहर बीते,
निद्रा खंड खंड कर दे,
वह संघर्षरत मजदूर।।
स्वप्न देखे सफलता का,
आशाओं के पंख बांधे,
निज ह्रदय में जोश भरता,
फंस जीविका
मकड़ जाल में,
जीवन खंड खंड कर दे।
लक्ष्य हेतु जी तोड़ मेहनत।
वह संघर्षरत मजदूर।
कवि -दिनेश त्रिपाठी