मित्रों आजकल विकास-विकास बहुत चल रहा रहा है, हर तरफ विकास की चर्चा हो रही है।, इसी संदर्भ में प्रस्तुत है मेरी कविता.....
गुमशुदा विकास की तलाश
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मेरे प्यारे बेटे 'विकास'
लौट कर घर आज जाओ,
कहाँ-कहाँ नहीं तुमको ढूंढा
कर लिए सारे प्रयास ।
मेरे प्यारे......….
किसी ने कहा तुम गॉंवों में दिखे हो
वहाँ भी ढूंढ कर आया हूँ,
दिखे नहीं मुझे तुम कहीं भी,
कर ली सब जगह तलाश।
मेरे प्यारे बेटे......
किसी ने कहा तुम शहरों में दिखे हो
गलियों,सड़को, में ढूंढ़ लिया
थक कर,टूट गया हूँ बुरे हो चुके है, मेरे हालात ।
मेरे प्यारे बेटे .........
किसी ने कहा तुम अक्सर व्यापारियों के यहां दिखे हो
वो भी नोटबन्दी,GST,आर्थिक नाकेबंदी से थे परेशान
नहीं मिल पाया वहां भी कोई तुम्हारा सुराग़।
मेरे प्यारे बेटे.....
आने से बचने को
कोरोना का बहाना तो न बनाओ,
विदेशों में तो खूब दिखे हो
यहाँ भी दर्शन देते तुम काश...
फिर सुना तुम पागल हो गए हो
ऐसे हालात कैसे बन गए
सब ठीक हो जाएगा ,बस आ जाओ
सब ठीक हो जाएगा ऐसा मुझे है विश्वास ।
मेरे प्यारे बेटे .....
ते गम में तेरे दद्दा मौज उड़ा रहे है
तुझे ढूढ़ने के बहाने
कभी अमरीका, कभी कनाडा,कभी जापान जा रहें हैं
टूट गयी मेरी आस ।
मेरे प्यारे बेटे ......
अब लौट आ जाओ
तुम्हे कोई कुछ नही कहेगा
तुम्ही बहन गरीबी,और बीमार भारत माता
कर रहे इंतेज़ार तुम्हारा
थाम कर बैठे अपनी सांस....
मेरे प्यारे बेटे....

प्रताप सिंह

Hindi Poem by Pratap Singh : 111847460

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