7–कालिदास –
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे।
उन्होंने भी अपने ग्रंथों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था। किंतु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।
जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है।
उनके चार काव्य और 3 नाटक प्रसिद्ध है शकुंतला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।
8–वराहमिहिर –
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है।
इनमें ‘ बृहज्जात’ ,‘सूर्यसिद्धांत’ , ‘बृहस्पति संहिता’ ‘पंच सिद्धांति’ मुख्य है।‘गणक तरंगिणी’, ‘लघु जातक’, ‘समाज संहिता’ , ‘विवाह पटल’ योग ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।
9–वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।