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दीप के व्यथित मन को यहाँ न समझे कोई,

जलकर प्रज्ज्वलित करती औरों का घर-आंगन।

दीपक की संवेदना भी है अद्भुत-अनोखी,

खुद के अस्तित्व को मिटा, रौशन करती जीवन।

Hindi Poem by Archana Singh : 111839341

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