******जिंदगी******

महफूज नहीं है अब कहीं भी जिंदगी
आशियाने में भी दहशत में है जिंदगी

बेदम होती हवाओं में साँस लेती जिंदगी
अपने ही अल्फाजों से सहम ती जिंदगी

किसे कहे ? भय में दौड़ रही है जिंदगी
बदलते अपने खून से दर्द सह रही जिंदगी

दौर कैसा लालच से ही पनहा मांग रही जिंदगी
हर हाथ में खंजर खुद ही घायल हो रही जिंदगी

बेशुमार दौलत में तन्हाई से सिमट रही जिंदगी
कौन अपना ? खुद से ही जंग कर रही जिंदगी

बीमार हुई मौत की दावेदार बन गई है जिंदगी
रहम की गुजारिश में बचे दिन काट रही जिंदगी
✍️ कमल भंसाली

Hindi Poem by Kamal Bhansali : 111838406

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