मैं और मेरे अह्सास

यू दामन छुड़ाकर न चल दीजिये सुनो l
बहुत कुछ कहती हुईं रात बह रहीं हैं ll

आज क्यूँ इस तरह नज़रे मिलाते नहीं l
दिल में कोई बात तो छिपाई नहीं है ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111833206

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