नौकरानी (लघुकथा)
मैं जब आठवीं का विद्यार्थी था। हमारे प्रधानाचार्य स्वभाव से बहुत अच्छे आदर्शवादी व्यक्तित्व के धनी थे। मैं उनके दाम्पत्य को बचपन से देखता आया था उनमें संबंध थे परन्तु स्नेह नहीं था। हमेशा अपने पति को बात- बात पर टोकने वाली पत्नी, पति के एक गिलास पानी मांगने पर भी कह देती , मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं हूँ...! समय के साथ बहुत कुछ बदल गया। आज बाईस वर्षों बाद उनके बारे में जानकारी मिली,वो हमारे गुरु जी जिन्होंने सेवानिवृति के बाद सारी सम्पत्ति दान कर दी और स्वयं इंदौर के किसी आश्रम में रहतें हैं। जो हमेशा अपने पति की नौकरानी कहने वाली देवी इन दिनों किसी के घर पर नौकरानी बनकर रहते हुए जीवन यापन कर रही है।

(शिक्षा- पारिवारिक मर्यादा का पालन करे)

-हिन्दी जुड़वाँ

Hindi Story by हेतराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ : 111828044

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