सुन लो!
हृदय मे हो !
हृदय में हूँ तो !!
तुमसे ही हैं पर्व ये सारे ,
तुमसे ही है सावन ,
तुम हो तन मे ,
तुम हो मन में,
रोम - रोम जीवन में,
जहाँ बिठाया ,बैठे हो,
नही छू कोई, तुमको पाया |
दिखला लो बाहर तुम नाटक ,
बन्द कर लिया तुमने फाटक ,
ऐसा क्या अपराध किया?
बुरी अगर मै मिले ही क्यों थे ,
मिलकर तुमसे मै बुरी रही क्या?
पतितपावन हो जो तुम ,
मुझको पतित ही छोड़ दिया क्या ?
नही समझ पाई हूँ छवि को ,
जिस छवि ने मुझको है गहा ,
मुझे दिखा दो ! मुझे बता दो !!
किस छवि में आ मुझें पढ़ा |
हर मूरत में तुमको देखूँ ,
आखिर ! वह सूरत है क्या ?
मगर बताना हाथ पकड़कर ,
जबतक न समझूँ , मुझे जकड़कर,
देना मत केवल संकेत मुझे ,
क्षुद्र समझ है ,
सीमित परिधि ,
मगर भावना अलग नही |
कविता (अंश से)

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111824877

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