शीर्षक : सिद्धांत
ता: 10/08/2022

न रोको जिंदगी को उसे आगे बढ़ने दो
मौसम है बहारों का उसे भी मजे लेने दो

भूल जाओ कल लोग क्या क्या करते थे ?
माना पहले बिन सोचे पैर आगे नहीं बढ़ते थे

बंदिशों में ही पर्व मनाना कभी एक उसूल था
आदमी खुद में कम गेरों में ज्यादा मशगूल था

बदली हुई दुनिया में हर व्यवहार बदल गया है
अपनों की बात छोड़ो पड़ोसी भी दूर हो गया है

मैं न बदलूंगा ये फ़लसफ़ा अब फिजूल लगता है
पैबंद लगे कपड़े में हर कोई बुद्धिमान दिखता है

'कमल' दुनिया बदल दूँ कहना गलत लगता है
खुद को बदल लें यही सिद्धांत अब सही लगता है
✍️ कमल भंसाली

Hindi Poem by Kamal Bhansali : 111824668

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