हकीकत से दूर थे हम
सच में बहुत मजबूर थे हम
किसे कहते ? उनके के टूटे ख्बाब थे हम
कभी थे उनके अब बेगानों के साथ है हम
मुद्दतो से से वो उदास और तन्हा रहते है
कहने को आज भी उन्हें "माता-पिता" कहते है
जो हमारे एक आँसूं देख कर पिघल जाते थे
न सोचा कभी हमारे दिये गम में कैसे रह जाते थे ?
कल की जिनके पास जीने की वजह थे हम
हकीकत में आज उनकी मौत की चाह है हम
क्या कहें कितने मजबूर हो गये है, अब हम
चले आये उनसे दूर पर बिन अफसोस रह रहें हम
सजा तो मिलनी है कीमत तो गलती की चुकानी है
पछतावे की राते लम्बी उनकी यादें तो सदाआनी है
✍️ कमल भंसाली