सन्यासी परमसुखी
जबलपुर शहर के पास पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बसे मनगंवा नामक गांव में हिमालय की तराई से आये हुये एक महात्मा जी ग्रामवासियों के अनुरोध पर वहाँ पर बस गये थे। वे अत्यंत संयमी, चरित्रवान एवं आदर्शवादी व्यक्ति थे और उन्हें धन संपत्ति का कोई लालच नही था। वे केवल फलाहार ही ग्रहण करते थे। जिसकी व्यवस्था गांव वाले बारी बारी से स्वयं ही कर देते थे। महात्मा जी सदैव प्रभु की भक्ति एवं सेवा में पूर्ण समर्पित रहते थे। उन्होनें इस गांव को एक आदर्श गांव के रूप में बनाने का अपना सपना पूरा किया था। गांव के सभी रहवासी अत्यंत विनम्र, ईमानदार एवं आपस में भाईचारा रखते हुए एकदूसरे की मदद को सदैव तत्पर रहते थे।
एक दिन रात्रि के समय स्वामी जी गहरी निद्रा में सो रहे थे तभी उन्हें ऐसा अहसास हुआ कि भगवान साक्षात् प्रकट होकर मानो उनसे पूछ रहे है कि देखो संत जी आपके पूर्ण समर्पण श्रद्धा और लगन से मेरे प्रति आपने अपना जीवन दे दिया अब आपकी मृत्यु सन्निकट है। उन्होनें इसके प्रत्युत्तर में प्रभु से हाथ जोडकर प्रार्थना की हे भगवान मेैं तो आजीवन आपका सेवक रहा हूँ और अपने जीवन से पूर्ण संतुष्ट हूँ। मैं मृत्यु को भी वैसे ही स्वीकार करना चाहूँगा जैसे जन्म के समय खुशी होती है। प्रभु मेरी यह इच्छा कि जिस विधि से आपको प्रसन्नता प्राप्त हो उसी विधान से मैं देह त्याग की इच्छा रखता हूँ। यह सुनकर प्रभु भी आश्चर्य में पड गए कि यह कितना समर्पित भक्त है जो मृत्यु में भी ईश्वर की खुशी की ही इच्छा करता है।
उसी समय उनकी निद्रा खुल गयी और प्रातः काल उन्होंने गांव वालों को अपने स्वप्न के विषय में बताते हुए निवेदन किया कि अब मेरे जाने का समय आ गया है। मेरी मृत्यु के उपरांत किसी प्रकार का दुख वियोग नही कीजियेगा। मैंने आजीवन आपके सुख, शांति और समृद्धि की कामना की है और यह गांव आदर्श गांव के लिये प्रसिद्ध है। मेरे जाने के बाद भी इसे इसी प्रकार आदर्श गांव बनाए रखियेगा। इतना कहकर वे सबसे विदा लेकर वापिस अपने कुटिया में चले गये। कुछ क्षणों बाद ही गांव वालों ने देखा कि एक चमकती हुयी रोशनी आकाश की ओर जा रही है। यह अदभुत दृश्य देखकर वे कुटिया के अंदर गये तो उन्हें कुटिया में स्वामी जी के पूजा स्थल पर उनका शरीर निश्चल अवस्था में आसन पर बैठा मिला। यह बात बहुत तेजी से चारों ओर फैल गयी और चारों ओर से लोग उनके अंतिम दर्शन के लिये आने लगे और वे सभी भारी मन से, नेत्रों में अश्रु लिये हुये उनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित हुये। एक सन्यासी की आदर्शवादिता, कर्मठता और प्रभु भक्ति से वह आदर्श गांव अन्य लोगों के लिये भी प्रेरणा स्त्रोत बन गया।