इसे जानना बहुत जरूरी है. . .

World Refugee Day विश्व शरणार्थी दिवस ?

हालांकि 'रिफ्यूजी' शब्द कोई नया नहीं है लेकिन 'रिफ्यूजी डे' शब्द अभी भी विश्व के कई देशों के लिए पूरी तरह परिचित नहीं है, जबकि रिफ्यूजी यानी शरणार्थी लोगों की समस्या पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में व्याप्त है।

शरणार्थी शब्द मुख्य रूप से उन लोगों के लिए परिभाषित किया गया है, जिन्हें जाति, धर्म या किसी विशेष विचारधारा के चलते सामाजिक या राजनीतिक रूप से समूह में उत्पीड़न के भय से अपने घर, स्थान या देश को छोड़ना पड़ा हो।
इसी अवधारणा को लेकर सयुंक्त राष्ट्र के शरणार्थी सम्मलेन 1951में विचार किया गया और दिसंबर 2000 में 20 जून को 'विश्व शरणार्थी दिवस' मनाने का आह्वान किया गया।
तब से कमोबेश पूरे विश्व में आज ही के दिन मनाए जाने वाले विश्व शरणार्थी दिवस के अंतर्गत इनके संदर्भ में बनाई गई संस्थाओं द्वारा (जिनमें एक सयुंक्त राष्ट्र द्वारा बनाई गई UNHCR यानी United Nations High Commissioner for Refugees भी है) विश्व भर के शरणार्थियों के सहयोग के लिए कार्य किया जाता है।
इस संस्था द्वारा प्रतिपादित नियमों के अनुसार किसी शरणार्थी को उस देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिए,जहां उसकी सुरक्षा और स्वतंत्रता को खतरा है, हालांकि कोई भी वह शरणार्थी इस अधिकार की मांग नहीं जर सकता जिसे किसी अपराध का दोषी या देश की सुरक्षा के लिए खतरा माना गया हो।

शरणार्थी दिवस को यदि हमारे देश के संदर्भ में देखा जाए तो भारत 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए इसके नियम और सिद्धांत किसी भी रुप में भारत में लागू नहीं होते।
भारत में शरणार्थियों को केवल वैध और अवैध प्रवासियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
1955 में पारित भारतीय राष्ट्रीयता कानून, नागरिकता अधिनियम (भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 से 11) के अंतर्गत नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) बनाया गया था जिसे 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और अंतिम बार 2019 में संशोधन किया गया था।
पिछले 72 वर्षों में (2019 तक) भारत में केवल तिब्बत और श्रीलंका के कानूनी अप्रवासियों को मान्यता दी गई, लेकिन 12 दिसंबर 2019 को संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित (citizenship amendment bill) होने के बाद 31 दिसंबर 2014 से पहले, भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये हिन्दू, जैन, पार्सिस, क्रिस्चियन, सिख और बुद्धिस्ट जैसे उत्पीड़त अल्पसंख्यक समुदायों के प्रवासी लोग भी भारतीय नागरिकता के पात्र होंगे। यहां यह बात बहुत ग़ौरतलब है कि इसमें मुस्लिम समाज, को जो इन देशों में बहुसंख्यक हैं को इस कानून से बाहर रखा गया है।
अतः शरणार्थी दिवस की उपयोगिता समझने के साथ-साथ भारत में इस पर की जानी वाली राजनीति को समझना भी बहुत जरूरी है।

// वीर //

(रिकॉर्ड और तिथियां गूगल से साभार)

Hindi Thought by VIRENDER  VEER  MEHTA : 111813581

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