शीर्षक: आ गले लग जा
गहराई से किसी को इतना गले न लगाओ
कि दिल की कमीज पर सलवटे उभर आये
रस्मों के जहाँ में पता नहीं क्या न निभ पाये ?
बिन कारण दर्द की रेखाएँ गहरी न हो जाये
माना हर रिश्ते में दृश्यत प्रेम थोड़ा जरुरी होता है
क्योंकि अहसास में दिखावट का नशा जो होता है
सोचे तो स्वार्थ बिन सँसार का पहिया रुक जाता है
लगे एक दाग में सौ दागों का निमंत्रण जो होता है
हर रिश्तें में समझ अंत तक साथ नही निभाती है
साथ चलने से दिल में जगह तय नहीं हो जाती है
चिंतन के दरबार में हर रिश्तें की जगह तय होती है
दस्तूर निभाने में गले लगने की रस्म ज्यादा होती है
इस लिये यह तय करके ही आगे बढ़ते रहना है
अपनों की भीड़ में ही आदमी ज्यादा अकेला है
प्रेम में विश्वास की जड़ न हो तो सिर्फ निभाना है
इस जग में तय नहीं कौन अपना कौन बेगाना है ?
रिश्तें वही अच्छे होते साथ चलकर चुप रहते है
गले न लगे पर गिरने पर हाथ बढ़ाकर संभालते है
बिन किसी अहसास के फूलों की तरह महकते है
समय पर ये विश्वास देते हम उनके दिल मे रहते है
✍️कमल भंसाली