लोग मुझे रोज दे रहे हैं नसीहत
उम्र हो गयी कर लो वसीयत
जो थोड़ी बहुत खुशियां मिलीं थीं
उन्हें हमने पहले ही बाँट दी थी
हमारे पास बचा ही क्या है किसी को देने को
बस कुछ अधूरी हसरतें रह गयीं है दफ़नाने को
उनकी वसीयत कर क्यों खुद फजीहत होऊँ
जी करता है उन्हें साथ ले चैन से सो जाऊँ

Hindi Poem by S Sinha : 111806488

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