सुनो! तुम्हे तुमको बताया है |
क्या जानते नही हो ,
अनंत इच्छायें जुडी़ , तुम्ही से |
जीना है तुम संग ,
तुममे मिलने से पहले |
है स्पप्न कई , मनभावना हृदय
दर्पण मे ,
जिन्हे साकार रूप देना है तुम संग |
मै तुममे प्रेम को पूजती हूँ ,
मै मुझमे भावना को पूजती हूँ ,
मै इस घर को पूजती हूँ जिसे ,
तुम और तुम्हारी भावना ने कितने ही ,
ख्वाब रूपी रंग भरे हैं ,
क्यों समझते नही हो ,
तुम्ही तो हो केवल जिसका हाथ पकड़े
चल रही थी , आज सजीव हो गये ,
क्यों निराश खुद मेरे मन मे आशा भरकर|
तुम्हारे मूल को याद करना ,
पतन नही इच्छाओं का, बल है |
जिसे जगाती हूँ मै अपने अन्दर,
मुझे तुमसे कोई छीने न ,
मुझे तुम्हारे सिवा कोई देखे न,
अपने विचार,चित्त को रोज साफ करती हूँ |
जिनमे तुम्हारे अतिरिक्त किसी और की छवि न ठहरे|
तुमसे जुड़ना है अनंत तक ,
पहर दोपहर के लिए नही ,
सुनो !
विराग से पहले मुझे राग न दोगे क्या ?
शून्य से पहले आवाज न दोगे क्या ?
रंगना है मुझे तुम्हारे साथ हर एक रंग मे,
बोलो मुझे रंगों की सौगात न दोगे ?
नीरसता के दर्पण से मत देखो मुझे !
हॄदय प्रीतरस रंग रमोगे ,
बोलो मुझे जीवन्त से पहले जीवन न दोगे?
तुममे जो मै हूँ ! मुझमे जो तुम हो!
मिलाकर "हम" से, "मै"न करोगे?
बोलो ! मनमना मे प्रवेश न लोगे ?
17/5/2022,10:21AM

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111805895

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