इतने बड़े जहान में कोई मिला नहीं ,

मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ? मुझे इसका सिला नहीं ----

पाया है सभी चेहरे तो बदरंग हैं यहाँ ,

अपने -पराए हैं कहाँ ,कोई मिला नहीं ----

धोबी के घाट से चला ,घर से बिछ्ड़ गया ,

जाऊँ कहाँ के कोई भी अपना पता नहीं ----

छ्पवा दिया किसीने मुझे 'न्यूज़ 'बना के ,

धुंधले हैं सब हर्फ़ सब ,कोई दिखा नहीं ----

लटके हुए देखे हैं मैंने जिस्म हज़ारों ,

अब क्या कहूँ किसकी खता ,किसकी खता नहीं ----



डॉ . प्रणव भारती

Hindi Shayri by Pranava Bharti : 111803464
Pranava Bharti 2 years ago

स्नेहिल धन्यवाद शेखर

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अत्यंत गहन, चिंतन शील अभिव्यक्ति

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