इतने बड़े जहान में कोई मिला नहीं ,
मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ? मुझे इसका सिला नहीं ----
पाया है सभी चेहरे तो बदरंग हैं यहाँ ,
अपने -पराए हैं कहाँ ,कोई मिला नहीं ----
धोबी के घाट से चला ,घर से बिछ्ड़ गया ,
जाऊँ कहाँ के कोई भी अपना पता नहीं ----
छ्पवा दिया किसीने मुझे 'न्यूज़ 'बना के ,
धुंधले हैं सब हर्फ़ सब ,कोई दिखा नहीं ----
लटके हुए देखे हैं मैंने जिस्म हज़ारों ,
अब क्या कहूँ किसकी खता ,किसकी खता नहीं ----
डॉ . प्रणव भारती