प्रजातंत्र बरगद की तरह खड़ा
गालियां, गलबहियाँ
झूले की तरह पड़ी
गणतंत्र को करतीं हैं पीला,
हर टहनी पर भूतों का डेरा
हर शाखा पर चोरों का कबीला
जन-गण के मस्तक पर प्यास-पसीना,
पर छत्ते पर मधुमक्खियों का घेरा
दूर-दूर तक घना अंधेरा
लेकिन बरगद पर है हमें भरोसा ।
* महेश रौतेला
०३.०५.२०१४