वह बिना अलार्म के उठती है रोज,
सूरज और चिड़िया के संग ।
काम पर जाने से पहले
बहुत सारा काम निपटाना होता है।
घर का निपटाने के बाद और
नौकरी पर पहुंचने के दरमायन भी
उसके हिस्से हैं कुछ महत्ती काम ।
रास्ते में मुन्नी को बस स्टैंड छोड़ना,
स्कूल बस रवाना हो जाने तक रुकना।
फिर दौड़ते भागते ऑफिस पहुंचना !
साढ़े सात बजे तो रजिस्टर हटा लिया जाता है।
ये फोन भी उसकी जान को खाने खाता है।
चाय ब्रेक, लंच ब्रेक में
परिवार, रिश्तेदार, दोस्तों को
वर्षगांठ की शुभकामनाएं,
तबियत पानी पूछना ...
दुनियादारी निभाने की जिम्मेदारी उसी की है।
ऑफिस से लौटते हुए सब्जी, कुछ राशन,
कोई स्टेशनरी, दवाई ही लाना होता है।
काम से लौट कर उसे काम पर लग जाना है !
रसोई समेटते, बच्चों का होमवर्क चेक करते,
मां जी को संभालते, साथी को समय देते
अभी आज सिमटा भी नहीं है और
वह मन ही मन
कल के काम की फेहरिस्त पर
डाल रही है नज़र।
बत्ती बुझाते बुझाते याद आ गया है उसे
मांजी का डॉक्टर से अपॉइंटमेंट, और हां
दही भी तो जमाना है!
स्त्री काम से कब लौटती है !
स्त्री काम पर कब जाती है !

मुखर
1/5/22
#मजदूर_दिवस

Hindi Poem by कविता मुखर : 111802871
Ghanshyam Patel 2 years ago

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