किसी व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य जब मृत्यु के निकट पहुँच कर भी पूर्ण हो जाता है तब उसकी मृत्यु उसे ज्यादा परेशान नहीं कर पाती। अश्वत्थामा भी दुर्योधनको एक शांति पूर्ण मृत्यु प्रदान करने की ईक्छा से उसको स्वयं द्वारा पांडवों के मारे जाने का समाचार सुनाता है, जिसके लिए दुर्योधन ने आजीवन कामना की थी । युद्ध भूमि में घायल पड़ा दुर्योधन जब अश्वत्थामा के मुख से पांडवों के हनन की बात सुनता है तो उसके मानस पटल पर सहसा अतित के वो दृश्य उभरने लगते हैं जो गुरु द्रोणाचार्य के वध होने के वक्त घटित हुए थे। अब आगे क्या हुआ , देखते हैं मेरी दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया" के इस 35 वें भाग में।

Hindi Poem by Ajay Amitabh Suman : 111802648

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