"मृगमरिचिका"
मैं भागी हूं उसके पीछे
कई बार उल्लास में
कभी प्यास में !
जानती बूझती कभी,
कभी अनजाने में !
ठेठ मरुथल में धोरों के पार कभी
सीधी सपाट काली सड़क पर कभी,
कभी सूखे गले, फिर रुआंसी धीर बांधती,
कभी तर गले मुस्कुराती एक्सीलेटर दबाती,
उसकी छाती पर से सर्रर गुजर जाती !
मृग मरीचिका !
कभी सताती !
कभी बहुत भाती !
मैं भागी हूं उसके पीछे ,
भागती हूं उसके पीछे पीछे !
27/4/22
मुखर